रविवार, 17 जनवरी 2016

कामयाबी, एक मदमस्त केला।

क्या उस नन्हे से बन्दर को देख रहे हो, कितना ख़ुशी से व्याकुल है वह उस अधसड़े केले को छील कर । उसकी चेहरे की ललाहट ऐसी, जैसे उससे ज़्यादा प्यारी और पीली चीज़ उसने अपनी उछालती-कूदती ज़िन्दगी में देखि ही न हो । लेकिन नन्हा शावक अपनी प्रफुल्ता में भूल रहा है , की उसके पीछे इसी फिराक में एक बड़ा सा वानर उसीके आहार को घूर रहा है। कुछ इसी माध्मस्त नन्हे शावक और खूंखार बड़े वानर की भूमिका निभाये जीवन जी रहे है हम, थोड़ी ख़ुशी-थोड़ा डर। 

ख़ुशी हमें इस बात की है की हम कामयाबी से बस दो कदम पीछे है, और डर इस बात का की उसे चूमने से पहले, कही वह रूठ चली ना जाये हमसे।कामयाब व्यक्ति वह नहीं, जो अपनी मनचाहि हर मनोकामना हासिल करले, बल्कि वह है जो उसही मनोकामना के न प्राप्त होने पर, उदासी के महतम् न मनाये। 

आज नहीं तोह कल कामयाबी ज़रूर मिलेगी, क्योंकि इमली नहीं तोह जिमली ज़रूर मिलेगि। 

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