चुटकुलों की बरसातों में, मस्ती-फुलवारियों की सौगातों में,
पल रही थी बच्चों की शाम, ममता के प्यारे आंचलों में।
भिंडी, गोभी, लौकी, आलू, नजाने क्या क्या लेकर बैठी थी माँ,
बाघन में खेले उसका बच्चा, सब्ज़ी काटे सपना देख रही थी माँ।
सपने में बच्चा दिखाए रहा था, एक नया सूरज दुनिया को,
अचानक सपना टूटा, जब सुना दहशहत भरी उन चीखों को।
एक मिनट पहले जो बच्चा झूले पे था,
अब चिथड़ों में है।
एक मिनट पहले जो माँ सपनो में थी,
अब सदमे में है।
खून के फुवारे उछालती, नजाने किन भेड़ियों की होली है यह,
जलती चिताओं पर रोटी सेकने वाले नजाने किन हैवानों की रोज़ी है यह।
करोड़ों की तादात में नमाज़ थी, कोहली वाटसन के लिए उस शाम,
काश बस एक दुआ लगजाति, मेरि अधजली माँ, बिखरे शावक के नाम।
आज घुट रहा दम जीने में, उठ रहा है सवाल सीने में,
क्या विशवास करोगे, खुदके मटके का पानी भी पीने में?
अचानक सपना टूटा, जब सुना दहशहत भरी उन चीखों को।
एक मिनट पहले जो बच्चा झूले पे था,
अब चिथड़ों में है।
एक मिनट पहले जो माँ सपनो में थी,
अब सदमे में है।
खून के फुवारे उछालती, नजाने किन भेड़ियों की होली है यह,
जलती चिताओं पर रोटी सेकने वाले नजाने किन हैवानों की रोज़ी है यह।
करोड़ों की तादात में नमाज़ थी, कोहली वाटसन के लिए उस शाम,
काश बस एक दुआ लगजाति, मेरि अधजली माँ, बिखरे शावक के नाम।
आज घुट रहा दम जीने में, उठ रहा है सवाल सीने में,
क्या विशवास करोगे, खुदके मटके का पानी भी पीने में?