जो बेजुबानों की न्यायलय होती, तोह इंसान सजाये मौत को सिद्धर्ता।
जो आसमान के फेफड़े होते, तोह इंसान नामक कैंसर का इलाज होता।
हवस की इस आड़ में, इज़्ज़त बचाना एक व्यर्थ सा मकसद है।
इंसानियत तोह बस एक मखौल है, किताबी ज्ञान का,
समझदारी तोह बस अब फायदा-नुक्सान तोलने में है।
भूत, भविसशया, वर्तमान अब हो चूका है इतिहास,
आया अब आधुनिक काल का क्षेत्र भाया !
जहाँ लाखों दिखेंगे, लिखेंगे लेकिन मिलेंगे नहीं,
बोलेंगे लेकिन बिनबोले दिल की सुनेंगे नहीं।
बोलेंगे लेकिन बिनबोले दिल की सुनेंगे नहीं।
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