बुधवार, 16 मार्च 2016

कर्मलोक से यमलोक तक

सोमरस के उस प्याले ने कुछ ऐसी धड़कन रोकी,
ना तोह सांसें मेरी रही, ना हो सकी खुदा की !

पैसा, बांग्ला, गाडी, चाकर, क्या मिला मुझे इनको पाकर,
मेरी आखरी साँसे लेते, बच्चे झगडे उन्सब्की खातर !

दूध फटे है, पनीर बनने को,
यहाँ जिगर फटा है मेरे मरने को!

मरना इक दिन सबको है, कोशिशें चाहे करलो हज़ार,
कलयुग की इस दुनिया में, मेरा हरी बीके है बीच बाजार!

दाम लगा आज मेरा यहाँ, पाप पुण्य के तराज़ू में तोलकर,
यमलोक आकर पता लगा, सस्ता निकला ईमान टटोलकर!

आखरी सवाल मैंने मरते हुए पूछा खुदसे, क्या में भी एक पिशाच तोह नहीं था?
तब आवाज़ आई अंदर से, नहीं नहीं, तुम इंसान उन जीवों को भी विलुप्त कर चुके हो।

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