सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

विक्रेता

काले जूते, पीली कमीज, लाल टाई और ठंडा टिफिन,
जेंटलमेन बने बिक्री करवाने निकल पड़े विक्रेता बिपिन।

सुबह के नाश्ते में साहब की गाली,
दोपहर के भोजन की ग्राहक ने लगा डाली।
शाम की रिपोर्ट के साथ नौकरी जाने की धमकी,
सोचा घर जाकर रोउंगा पर वहां बीवी आ धमकी।

हर शाम बाद ज़हन बस एक ही सवाल अपने आप से दोहराता है,
की कंबखत यह रविवार सोमवार के छ: दिन बाद क्यों आता है?

दोसतों, शूरवीर तोह बस एक बार प्राणों की कुर्बानी कर शहीद कहलाता है,
पर विक्रेता टारगेट की पीड़ा को केरोसिन बना हर सपने को जला पल पल मरता है 

भाभीजी के लिए  किफायती डिटर्जेंट,
चुन्नू के लिए सतरंगी खिलोने,
साहब के लिए छुपे कैमरा वाला पेन,
कांता बाई के लिए नीला लेट्रिन का शैम्पू,

हाँ यही मेरा सत्य है।

काश वे कॉलेज के दिनों मैं हर शाम कबीर के दोहे ना दोहराता,
सॉक्रेटीस के सपनों को पीछे छोड़ मैं थोड़ा गणित पर भी ध्यान लगाता।

आज गंजे को कंगी, और कश्मीर में बर्फ तोह बेच सकता हूँ में,
पर क्या खुदके बीके सपनों को वक्त के दाम वापस खरीद सकता हूँ मैं?

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